प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी / naturopathy) एक चिकित्सा-दर्शन है। इसके अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ का आधार है - 'रोगाणुओं से लडने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति' । प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत अनेक पद्धतियां हैं जैसे - जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, अक्यूपंचर, एक्यूप्रेसर, मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है; जैसे भारत का आयुर्वेद तथा यूरोप का 'नेचर क्योर' ।
प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है, जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्त्वों के उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्त्वों के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है।
इस प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हलकी पकी सब्जियाँ विभिन्न बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं गरीब देशों के लिये विशेष रूप से वरदान है।
परिचय[संपादित करें]
प्राकृतिक चिकित्सा न केवल उपचार की पद्धति है, अपितु यह एक जीवन पद्धति है । इसे बहुधा औषधि विहीन उपचार पद्धति कहा जाता है। यह मुख्य रूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर आधारित है। जहॉ तक मौलिक सिद्धांतो का प्रश्न है इस पद्धति का आयुर्वेद से निकटतम सम्बन्ध है।
प्राकृतिक चिकित्सा के समर्थक खान-पान एवं रहन सहन की आदतों, शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश्ा तथा अनेक नई प्रकार की चिकित्सा विधाओं पर विश्ोष बल देते है।
मिट्टी चिकित्सा[संपादित करें]
मुख्य लेख : मृदा चिकित्सा
मिट्टी जिसमें पृथ्वी तत्व की प्रधानता है जो कि शरीर के विकारों विजातीय पदार्थो को निकाल बाहर करती है। यह कीटाणु नाश्ाक है जिसे हम एक महानतम औषधि कह सकते है।
मिट्टी की पट्टी का प्रयोगः[संपादित करें]
उदर विकार, विबंध, मधुमेह, शिर दर्द, उच्च रक्त चाप ज्वर, चर्मविकार आदि रोगों में किया जाता है। पीडित अंगों के अनुसार अलग अलग मिट्टी की पट्टी बनायी जाती है।
वस्ति (एनिमा)[संपादित करें]
मुख्य लेख : वस्ति
उपचार के पूर्व इसका प्रयोग किया जाता जिससे कोष्ट शुद्धि हो। रोगानुसार शुद्ध जल नीबू जल, तक्त, निम्ब क्वाथ का प्रयोग किया जाता है। वस्ति(enima) वह क्रिया है, जिसमें गुदामार्ग, मूत्रमार्ग, अपत्यमार्ग, व्रण मुख आदि से औषधि युक्त विभिन्न द्रव पदार्थों को शरीर में प्रवेश कराया जाता है।
जल चिकित्साः[संपादित करें]
इसके अन्तर्गत उष्ण टावल से स्वेदन, कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक, वाष्प स्नान, कुन्जल, नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी, शोध, उदर रोग, प्रतिश्याय, अम्लपित आदि रोगो में किया जाता है।
सूर्य रश्मि चिकित्सा[संपादित करें]
सूर्य के प्रकाश के सात रंगो के द्वारा चिकित्सा की जाती है।यह चिककित्सा शरीर मे उष्णता बढाता है स्नायुओं को उत्तेजित करना वात रोग, कफज, ज्वर, श्वास, कास, आमवात पक्षाधात, ह्रदयरोग, उदरमूल, मेढोरोग वात जन्यरोग, शोध चर्मविकार, पित्तजन्य रोगों में प्रभावी हैं।
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